पर्यावण संरक्षण सभी की जिम्मेदारी- डॉ. शिव कुमार

हरिद्वार। प्रकृति का अनुपम सौंदर्य जल, जंगल और जमीन है। इनमे से किसी का भीे पतन प्राकृतिक संतुलन बिगाडता है और प्रकृति का सौंदर्य भी क्षीण होता है। संतुलन एवं सौदर्य से जुडी यह वास्तविकता मानव अस्तित्व के लिए खतरा है। प्रकृति की अनुपम सौगात जल, जंगल और जमीन तीनों ही रूप से मानव का सर्वाधिक कल्याण करती है। जल जहां जीवन का आधार है, वही जंगल सौदर्य एवं अलंकरण। जबकि जमीन इस आधार एवं अलंकरण को अपना संरक्षण प्रदान करते हुए इसकी उन्नति में वृद्वि करती है। प्रकृति का यह सम्पन्न रूप मानव मन को स्पंदित एवं आहलादित करता है। अतः मनुष्य को इस संतुलन को बनाये रखने के लिए सदैव संवेदनशील एवं प्रयासरत रहना चाहिए। 


27 मई की वह घटना जो मनुष्य की संवेदनशीलता तथा उसके दोहरे चरित्र को तार-तार करती है। जंहा व्यक्ति अपने क्षणिक सुख अथवा स्वार्थ के लिए जंगली जानवर की जान के महत्व को कम आंकता है। ऐसा ही हदय को व्यथित करने वाला वाक्या केरल मे मादा हाथिन के जीवन को मनुष्य के अमानवीय कृत्य द्वारा लील जाना पूरी मानवता को शर्मसार करता है। इस घटना मे एक बेजुबान गर्भस्थ मादा हाथिन द्वारा पटाखें से भरा अनानास खाने के कारण हाथिन तथा उसके गर्भस्थ शिशु के लिए काल का ग्रास बन गया। केरल की साईलेंट वैली के वाॅर्डन सैमुअल मचाऊ के अनुसार वह हाथिन इस हादसे से 3 दिन तक दर्द से तडपती रही है, परन्तु इस हाल मे भी उस बेजुबान जानवर ने किसी को कोई नुकसान नही पहुॅचाया। हाथिन अपने दर्द को कम करने की आशा से पास के जलाशय में चली गई  जहां वह रातभर पानी मे खडी रही। परन्तु दर्द कम न होने के कारण उसी पानी के जलाशय मे उसने अपने प्राण त्याग दिये। यह घटना पूरी मानवता के लिए एक सबक है। विश्व पर्यावरण दिवस, जहां हमस ब जल, जंगल और जमीन की चिंता करते है। वही पर्यावरण के संतुलन की भी बात करते है। पर्यावरणविद्वों के अनुसार पेड-पौधों एवं जानवर की 80 लाख प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। ऐसे समय मे हमें जल, जंगल, जमीन और जानवर के अस्तित्व की रक्षा का प्रण लेना चाहिए। हाथिन की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में कारण कुछ भी हो आखिर हाथिन ने अपनी तथा अपने गर्भस्थ शिशु की जान गंवा दी। अर्थात प्राकृतिक संतुलन से जुडी जानवरों के महत्व की एक कडी कमजोर अवश्य हुई है। जिसके प्रभाव से मनुष्य अभी अनजान है। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो यह प्रण भी लेना आवश्यक है। क्योकि जंगली जानवरों की जिंदगी के लिए मनुष्य एक अभिशाप बनता जा रहा है। अपने व्यक्तिगत हितार्थ आज के मनुष्य ने सदा ही अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किया है। जंगली जानवरों के लिए न जंगल छोडे है और न ही पानी के प्राकृतिक स्रोत। जंगल के समीप अपने रिहायश या विश्राम घर बनाकर मनुष्य ने जंगली जानवरों के जीवन को अपनी विलासिता का साधन मान लिया है। ऐसी स्थिति के कारण जानवर जंगल से बाहर आ रहे है। जब जंगली जानवर जंगल से बाहर आते है और किसी मनुष्य को हानि पहुंचाते है। तब वे आदमखोर घोषित कर दिए जाते है। सरकारी व्यवस्था के भी मनुष्य जीवन का महत्व जंगली जानवर से अधिक आंका जाने के कारण ऐसे जानवर को शूटर के माध्यम से मौंत के घाट उतार दिया जाता है।

ऐसी घटनाएं अवश्य ही पूरी मानवता के लिए एक चुनौती है। आओं विश्व पर्यावरण दिवस पर हम ऐसी गलतियों से सावधान रहने का संदेश देने का प्रयास करे। जिससे जल, जंगल, जानवर और जमीन का यह अतुलीय संबंध बना रहे।   

(डाॅ0 शिव कुमार, पर्यावरण चिंतक)