अपने बच्चों को अवसाद में जाने से रोकिए......


आपके बच्चों को चाहिए आपका साथ
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✍डॉ. शिवा अग्रवाल
अमेरिका के बोस्टन स्थित नॉर्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी के अध्ययन के अनुसार 5 में से 1 बच्चे में अवसाद की समस्या 4 साल के भीतर और बढ़ी है। रिसर्च में पाया गया की बच्चों के मस्तिष्क में अवसाद की शुरुआत 7 साल की उम्र से पहले ही हो जा रही है। यह शोध हाल ही में जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के साईक्रेटरी में प्रकाशित हुआ है। देखा जाए तो बच्चों में अवसाद की समस्या बढ़ रही है । इसी का प्रभाव है कि बच्चे आत्महत्या तक करने लगे हैं । वैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चा परिवार व दोस्तों से दूरी बनाने लगे, परेशान व चिंतित दिखे और शारीरिक रूप से थका हुआ महसूस करें तो उसकी मदद करनी चाहिए । आज हम भौतिकता वादी युग में जी रहे हैं जहां आउटडोर खेलों की जगह कंप्यूटर लैपटॉप मोबाइल और टीवी ने ले ली है। भागमभाग की जिंदगी के चलते माता पिता बच्चों को समय नहीं दे पाते साथ ही पढ़ाई लिखाई के बोझ तले बच्चों का बचपन दब रहा है। नंबरों की होड़ में बच्चे उलझे हैं तथा अवसाद में रहते हैं। आज दैनिक अमर उजाला में भारत में अवसाद ग्रस्त बच्चों का आंकड़ा भी प्रकाशित हुआ है। चौंकाने वाली बात यह है कि 25 फ़ीसदी बच्चे जिनकी उम्र 13 से 15 साल के मध्य है वह अवसाद में है तथा 7 फ़ीसदी बच्चे अपनों से तंग होने के चलते अवसाद में चले जाते हैं । 25% किशोर उम्र के युवा अवसाद व निराशा में डूबे रहते हैं तथा 11% की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ रहा है। कुल मिलाकर भारत जैसे देश में बच्चों के भीतर बढ़ रहे अवसाद की प्रवृत्ति निश्चित ही चिंता का विषय है साथ ही अभिभावकों एवं शिक्षकों को सोचना होगा कि यह स्थिति और ना बढ़े तथा बच्चे अवसाद मुक्त हो। युवा पीढ़ी का बचपन हमारी बढ़ती आशाओं के तले दबना नहीं चाहिए बच्चे को उसके नैसर्गिक रूचि के अनुसार आगे बढ़ते देना चाहिए । यदि हम अपनी विचारधारा और अपेक्षाओं को एक हद से ज्यादा बच्चों पर थोपेंगे तो बच्चे के अवसाद में जाने की संभावना ज्यादा बढ़ जाएगी साथ ही अभिभावकों को चाहिए कि इंटरनेट एवं अन्य संसाधनों के बीच वह बच्चों के साथ समय बिताएं तथा उन पर नजर रखें।